Tuesday 1 November 2016

राजपूती स्वाभिमान एवं शौर्य की एक संक्षिप्त गाथा


रूपनगर की राजकुमारी चारुमति और महाराणा राज सिंह

एक फ़ारसी माँ का जाया हुआ औरंगज़ेब, राजपूतों में अपनी साख न होने के कारण चिंतित रहता था। एक किस्सा तब का जब उसकी शक्ति चरम पर थी...
1611 में किशनगढ़ का राठौड़ राज पितृ-राज्य मारवाड़ से टूट गया। जोधपुर के राजा उदय सिंह के पुत्र किशन सिंह ने किशनगढ़ बसाया। किशनगढ़ के पंचम नरेश रूप सिंह राठौड़ ने उत्तर में राज्य विस्तार कर रूपनगर में भव्य राजधानी बनायी।
1658 में रूप सिंह समूगढ़ में औरंगज़ेब के विरुद्ध लड़ते हुए  वीरगति को प्राप्त हुए।
रूप सिंह की पुत्री, राजकुमारी चारुमति के सौंदर्य के विषय में औरंगज़ेब ने सुन रखा था, उसने उनसे विवाह की इच्छा व्यक्त की और बुलावा भेजा।
दो हज़ार घुड़सवार और शाही दस्ता राजकुमारी को लेने पहुँचा।
स्वाभिमानी क्षत्राणी चारुमति इस प्रस्ताव से अत्यंत क्रोधित हुईं और उन्होंने रजपूतों के मुखिया को पत्र लिखा।
पत्र में लिखा था- "अब क्या हंस और सारस का संगम होगा? एक शुद्ध रक्त राजपूतनी वानर मुख वाले एक हत्यारे से विवाह करेगी?"
चारुमति ने कहा अगर राणा उसे इस अपमान से नहीं बचाते हैं तो वह अपने प्राण दे देगी।
अपने शौर्य को ललकारे जाने पर सिसोदिया कुल के रक्त में उबाल आ गया! तेज़ हवाओं में जान की परवाह किये बग़ैर महाराणा राज सिंह ने रूपनगर की ओर कूच किया और हज़ारों मुग़लिया सैनिकों और शाही दस्ते की आँखों के सामने से राठौड़नी को ले गए। पूरे राजपूताने में हर्ष की लहर दौड़ गयी, दोनों का विवाह हुआ।
अगर समय रहते समस्त क्षत्रियों का स्वाभिमान जाग गया होता, तो शायद ही कभी मुग़लिया सल्तनत की नींव हिंदुस्तान में पड़ती।

Wednesday 28 September 2016

असकोट राज, पिथौरागढ़, उत्तराखंड

                                                   
       

                                                             असकोट राज (ज़मींदारी)

                                            शासक वंश- सूर्यवंशी (कत्यूरी/पाल)

वर्तमान प्रमुख- राजवर भानुराज सिंह। इनकी सुपुत्री, राजकुमारी गायत्री का विवाह जोधपुर के राजकुमार शिवराज सिंह से हुआ।

उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भारत-नेपाल सीमा पर एक नगर है असकोट, यह तेरहवीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों की एक शाखा द्वारा बसाया गया।
इतिहासकारों में कत्यूरी शासकों को ले कर कई मतभेद हैं, इनके विषय में विशेष प्रामाणिक लेख उपलब्ध नही हैं।
ब्रिटिश सरकार ने अपने शासनकाल में ई.टी.एटकिंसन को उत्तरी प्रांतों की जिलेवार रिपोर्ट बनाने के लिए नियुक्त किया। एटकिंसन के अनुसार कत्यूरी साम्राज्य उत्तर में भागलपुर (बिहार) से ले कर पश्चिम में काबुल (अफ़ग़ानिस्तान) तक था। [बद्री दत्त पाण्डेय के अनुसार कत्यूरी मूल रूप से अयोध्या से थे एवं उनका राज्य नेपाल से अफ़ग़ानिस्तान तक था]
किंवदंतियों और एटकिंसन के अनुसार शालिवाहन देव अयोध्या से हिमालय जाकर बद्रीनाथ के निकट जोशीमठ में बसे। उन्हीं के वंशज वासुदेव ने कत्यूरी वंश की स्थापना की। एटकिंसन ने असकोट के तत्कालीन राजवर से प्राप्त जानकारी और ताम्रपत्र शिलालेखों के आधार पर असकोट राजपरिवार के विषय में हिमालयन गज़ेटियर में लिखा।
छठी और सातवीं शताब्दी में कत्यूरी वंश का साम्राज्य अपने चरम पर था। फिर आपसी सामंजस्य की कमी और पारिवारिक कलह के चलते उसके पतन का दौर आया।

सम्राट ब्रह्म देव के पौत्र अभय पाल देव परिवार से विमुख हो कर एक शांत दूरस्थ क्षेत्र की ओर चले आये जिसे आज असकोट कहते हैं। यह क्षेत्र घने जंगलों से घिरा था एवं आबादी नगण्य थी। परिवार की मुख्यधारा से अलग हो कर अभय पाल देव ने अपने नाम के आगे से देव हटा दिया। तब से आज तक उनके वंशज अपना उपनाम पाल लिखते हैं।
कुछ ही समय में पाल वंश ने स्वयं को पुनर्वासित कर राज्य में अस्सी कोट/किले स्थापित किये (जिनमें से कुछ वर्तमान में नेपाल में आते हैं) और राज्य को नाम दिया अस्सीकोट जिसे कालांतर में असकोट कहा जाने लगा।
बारहवीं शताब्दी के अंत में वन रावतों को हरा कर पाल वंश का विस्तार हुआ।
राजा ने लखनपुर नामक जगह को अपनी राजधानी बनाया। यहीं चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी में पाल परिवार बसा। आज यह पूरी तरह उजड़ा हुआ है। एटकिंसन हिमालयन गज़ेटियर में लिखते हैं कि 1581 में असकोट पर अल्मोड़ा के राजा रूद्र चंद्र की संप्रभुता हो गयी। 1588 में राजवर राय पाल और उनके पूरे परिवार की निर्मम हत्या कर दी जाती है। परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य था एक नवजात शिशु (महेंद्र पाल) जिसे दाई/आया ने बचा लिया था। बाद में महेंद्र पाल को लालन-पालन के लिए अल्मोड़ा नरेश रूद्र चन्द्र के पास भेज दिया जाता है। महेन्द्रपाल के बड़े होने पर अल्मोड़ा नरेश असकोट राज पुनः बहाल कर देते हैं।
महेन्द्रपाल वापस असकोट आते हैं पर उन्होंने राजधानी लखनपुर में बसने के बजाय देवाल में एक मज़बूत किला बनाया। पूरे पत्थर का यह किला हमले की स्थिति में पूरी तरह सुरक्षित था!
एटकिंसन गज़ेटियर में राजवर महेन्द्रपाल और उनके काका रूद्र पाल के बीच हुए संपत्ति विवाद का ज़िक्र करते हैं।
रूद्रपाल और उनके अनुज को उनके हिस्से का राज्य दे दिया गया। अस्सी गाँव महेन्द्रपाल और बाकी के चौबीस रूद्रपाल के पुत्रों में बंट गए।
बहादुर पाल की मृत्यु के बाद पुष्कर पाल असकोट के राजवर बने, पाल वंशियों ने सीमायें बढ़ाने, कब्ज़े करने के बजाय खुद के राज्य को सम्पन्न बनाने की दिशा में काम किया।
एटकिंसन गज़ेटियर में लिखते हैं कि कत्यूरी राजकुमारों को राज्यवर कहके सम्बोधित किया जाता था। 1204 में राजवर इंद्रदेव द्वारा दिये गए एक भूमि अनुदान पत्र से ऐसी जानकारी प्राप्त होती है।
पाल वंश की वंशावली में केवल ज्येष्ठ पुत्रों का उल्लेख है।
उत्तर प्रदेश ज़मींदारी अधिनियम और कुमाऊं ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम के अंतर्गत असकोट ज़मींदारी का अंत हुआ।
भारत में ऐसे चंद ही क्षत्रिय राज वंश हैं जिनका इतने लंबे समय तक का शासकीय इतिहास है, इसीलिए असकोट के सूर्यवंशी शासकों को शताब्दियों तक सम्मान मिला।
असकोट राज पर भले ही कालांतर में अन्य शासकों की सम्प्रभुता रही (चन्द, गोरखा, अंग्रेज़) पर उन सभी ने पारंपरिक रूप से पाल सूर्यवंशी कुल के विशिष्ट ऐतिहासिक महत्त्व को मान्यता दी।
इनका महत्व इनकी शक्ति और इनके धन के चलते नहीं, अपितु इसलिए था क्योंकि वे शाही कत्यूरी वंशज थे। ये भोग विलासिता से दूर बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करते थे। अट्ठारहवीं शताब्दी में जब गोरखा आक्रमण हुआ तो वे कांगड़ा तक काबिज़ हो गए पर उन्होंने असकोट में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
नेपाली गोरखा और अंग्रेज़ों के मध्य हुए युद्ध में गोरखा हार गए। सिधौली संधि के तहत अस्कोट भी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कत्यूरी वंश की यह शाखा धर्म-परायण रही, अपनी संस्कृति को जीवंत रखा। बच्चों में संस्कार रहे। भोजन उच्च वर्ण का ब्राह्मण ही बनाता था।
एटकिंसन लिखते हैं कि राजवर पुष्कर पाल उत्तानपाद की दो सौ इक्कीसवीं पीढ़ी थे।
पाल एक उपनाम है, वे कत्यूरी शाखा के विशुद्ध सूर्यवंशी हैं। महादेव इनके आराध्य हैं।
उत्तर प्रदेश में बसे पाल और सूर्यवंशी उपनाम वाले क्षत्रिय इसी कत्यूरी वंश की शाखा हैं और कुमाऊँ-गढ़वाल से आ कर उ•प्र• में बसे।
बस्ती जिले के अमोढ़ा राज और महसों राज एवं बाराबंकी का हड़हा राज  इसी वंश के हैं।  पाल सूर्यवंशियों की प्रथम स्वतंत्र संग्राम में अति महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनकी संख्या शेष वंशों की तुलना में बहुत कम है. उत्तर प्रदेश में इन्हें क्षत्रियों में सबसे उच्च वर्ण का माना जाता है !

अस्कोट राज
वंशावली-
सम्राट ब्रह्म देव
राजवर अभय पाल देव
राजवर निर्भय पाल
राजवर भरत पाल
राजवर भैरव पाल
राजवर भूपाल
राजवर रतनपाल
राजवर शंखपाल
राजवर श्यामपाल
राजवर साईंपाल
राजवर सुरजन पाल
राजवर भोजपाल
राजवर भरत पाल
राजवर स्तुतिपाल
राजवर अच्छवपाल
राजवर त्रिलोकपाल
राजवर सूर्यपाल
राजवर जगतपाल
राजवर प्रजापाल
राजवर रायपाल
राजवर महेन्द्रपाल
राजवर जैतपाल
राजवर बीरबल पाल
राजवर अमरपाल
राजवर अभयपाल
राजवर उच्छब पाल
राजवर विजयपाल
राजवर महेन्द्रपाल
राजवर बहादुरपाल
राजवर पुष्करपाल
राजवर गजेंद्रपाल
राजवर विक्रम बहादुरपाल
राजवर टिकेंद्र बहादुरपाल
राजवर भानुराज सिंह पाल

Friday 16 September 2016

संयुक्त प्रान्त (उत्तर प्रदेश) के राजपूत सामंत, भाग-३, भदैयां राज, सुल्तानपुर

                                                     

                                                 
                                                      भदैयां, सुल्तानपुर, उत्तर प्रदेश।
                                                            गाँव- 41, राज्य- अवध

उत्तर प्रदेश का 'राजकुमार' वंश, राजकुँवर का अपभ्रंश है जो कि मूलतः चौहान वंश है।
भदैयां राज के चौहान, पृथ्वीराज चौहान तृतीय के सीधे वंशजों में से हैं।
भदैयां राज के वर्तमान प्रमुख- श्री इंद्रप्रताप सिंह राजकुँवर परिवार के पैंतीसवें मुखिया हैं। इनका विवाह फूलपुर, बस्ती की रानी सरिता देवी से हुआ।ये वर्तमान में लखनऊ में निवासरत हैं।

तराईं के युद्ध के बाद चौहान साम्राज्य टूट गया, पृथ्वीराज चौहान के पुत्र अग्निराज गोविन्दराज चौहान दिल्ली से दक्षिण की ओर बढ़े और रणथम्भौर पर आधिपत्य स्थापित किया।
गोविन्दराज के पौत्र अग्निराज प्रह्लाद चौहान ने खुद को रणथम्भौर का स्वायत्त शासक घोषित कर सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया पर  शिकार खेलते हुए गंभीर रूप से घायल होने में कारण प्रह्लाद की मृत्यु हो गयी।
प्रह्लाद के पुत्र वीरनारायण चौहान ने विद्रोह जारी रखा, दिल्ली के सुल्तान इलतुत्मिश ने इनके समक्ष संधि का प्रस्ताव रखा और दिल्ली बुला कर इन्हें धोखे से ज़हर दे कर इनकी हत्या कर दी।
वीरनारायण चौहान की मृत्यु के पश्चात् राज्य के उत्तराधिकारी उनके काका वागभट्ट बने।
वागभट्ट चौहान ने सुल्तान बलबन को 2 बार हराया।
इनके पौत्र हम्मीर देव चौहान ने दिग्विजय की शुरुआत की। अपने राज्य का विस्तार किया, इन्होंने कोटि-यज्ञ भी किया और ख़िलजी को हराया।
आगे रणथम्भौर पर सुल्तान का कब्ज़ा होने पर हम्मीरदेव के पुत्र अग्निराज रामदेव चौहान निर्वासित हो कर रणथम्भौर से अवध की ओर रवाना हो गए।
रामदेव के पुत्र ताकशाह सिंह चौहान को राजकुँवर की उपाधि मिली और ये सुल्तानपुर में गोमती किनारे आ कर बस गए।
यहाँ इन्होंने काफ़ी भूमि खरीदी और राजस्व जमाकर और ज़मीनें लेते गए, कुछ ही वर्षों में उनके राज का विस्तार हो गया।
तकशाह के पौत्र ईशरी सिंह राजकुँवर ने एक छोटी सेना तैयार की और आस पास के क्षेत्र पर भी आधिपत्य जमा लिया।
पंद्रहवीं शताब्दी के अंत और सोलहवीं की शुरुआत में बरियाड़शाह राजकुँवर के नेतृत्व में चौहानों की शक्ति चरम पर थी।
18वीं शताब्दी में अंग्रेजों से विद्रोह के कारण भदैयां राज का पतन हुआ...युवराज जोखा राजकुँवर से सभी उपाधियाँ छीन ली गयीं, महल, किले ज़ब्त हो गए।
वंशावली:
अग्निराज अन्हिल- इन्हें चौवहनी की उपाधि मिली जिसे कालान्तर में चौवहन, चहमान फिर चौहान कहा जाने लगा।
वासुदेव चौहान
सामंतराज चौहान
नरदेव चौहान
अजयराज चौहान
विग्रहराज चौहान
चंद्र राज चौहान
गोपेन्द्र राज चौहान
दुर्लभ राज चौहान
गुवक चौहान
चन्दन राज चौहान
वाक्पति राज चौहान
विरायरम चौहान
चामुण्डा राज चौहान
दुर्लभ राज तृतीय
विग्रह राज तृतीय
पृथ्वीराज चौहान
अजयराज चौहान द्वितीय
अर्णव राज चौहान
विग्रह राज चतुर्थ
अमरंगे चौहान
पृथ्वीराज द्वित्तीय
सोमेश्वर चौहान
पृथ्वीराज तृतीय (कुल के महानतम शासक)
गोविन्दराज चौहान
बलहन् चौहान
प्रह्लाद चौहान
वीर नारायण चौहान
वागभट्ट चौहान
जैत्र सिंह चौहान
हम्मीरदेव चौहान
रामदेव चौहान

तकशाह सिंह राजकुँवर
राजशाह सिंह राजकुँवर
ईशरी सिंह राजकुँवर
देवराज सिंह राजकुँवर
चामुण्डाराज राजकुँवर
माधो सिंह राजकुँवर
जय सिंह राजकुँवर
उदय प्रताप सिंह राजकुँवर
पूजनदेव राजकुँवर
बृज सिंह राजकुँवर
जयपाल सिंह राजकुँवर
विग्रहराज सिंह राजकुँवर
विजय चंद्र सिंह राजकुँवर
जैत्र सिंह राजकुँवर
प्रताप सिंह राजकुँवर
गंगा सिंह राजकुँवर
आनंदपाल सिंह राजकुँवर
कुम्भकर्ण सिंह राजकुँवर
मेघराज सिंह राजकुँवर
रूद्र सिंह राजकुँवर
विजयराज सिंह राजकुँवर
केशवदेव सिंह राजकुँवर
बरियाड़ शाह राजकुँवर
संग्राम राज सिंह राजकुँवर
रुस्तम शाह राजकुँवर
तेज सिंह राजकुँवर
पृथ्वीराज सिंह राजकुँवर
रूद्र प्रताप सिंह राजकुँवर
वीरभद्र सिंह राजकुँवर
सूर्य नारायण सिंह राजकुँवर
बरियाड़ सिंह राजकुँवर
जोखा सिंह राजकुँवर
हरिकिशन सिंह राजकुँवर
चंद्रभूषण सिंह राजकुँवर
इंद्रप्रताप सिंह राजकुँवर (वर्तमान प्रमुख)

Thursday 1 September 2016

राष्ट्र गौरव अमर शहीद लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह





अमर शहीद लेफ्टिनेंट ठा• त्रिवेणी सिंह

देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
2 जनवरी 2004 को जम्मू रेलवे स्टेशन पर लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किये गए आतंकी हमले में त्रिवेणी सिंह ने अदम्य साहस और अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए आतंकियों को मार गिराया और सैकड़ों यात्रियों के प्राण बचाये, हमले में गंभीर रूप से घायल त्रिवेणी वीरगति को प्राप्त हुए।


देह त्यागने के पूर्व सिंह ने अपने कमान अधिकारी को सलूट करते हुए कहा "मिशन पूरा हुआ सर"
विशिष्ट बहादुरी के लिए सिंह को को भारत के सर्वोच्च (असैनिक काल) वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्वारा यह सम्मान त्रिवेणी के पिता कैप्टेन जन्मेज सिंह को दिया गया।
त्रिवेणी के कमान अधिकारी मेजर जनरल राजेंद्र सिंह ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा "मुझे गर्व है त्रिवेणी सिंह पर, जिन्होंने अपने शरीर पर कई गोलियों और ग्रेनेड का हमला झेल कर भी आत्मघाती हमलावरों को मार गिराया, यह आज तक की सबसे कम समय में पूरी की गयी सैन्य कार्यवाही है।"
त्रिवेणी चाहते तो और बल का इंतज़ार करते, मुठभेड़ घण्टों/दिनों तक चलती और कई जानें जातीं...पर वो अपने प्राणों की परवाह किये बगैर अकेले दुश्मनो पर टूट पड़े।


त्रिवेणी सिंह ठाकुर का जन्म 1 फ़रवरी 1978 को बिहार के नामकुन में हुआ (वर्तमान में झारखण्ड), वे पंजाब में पले-बढे।
सिंह ने कराटे, तैराकी, एथलेटिक्स में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीते थे।
नवल अकादमी में चयन होने के बावजूद घर वालों की इच्छा के चलते उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में बी.एससी एग्रीकल्चर में दाखिला लिया। त्रिवेणी के पिता चाहते थे की वे कृषि में स्नातक कर के उनके व्यवसाय को आगे बढ़ाएं। सिंह परिवार का पंजाब में 40 एकड़ का फार्म है, त्रिवेणी के पिता श्री जन्मेज सिंह रिटायर्ड फौजी हैं, वे कप्तान के पद से सेवानिवृत्त हुए।


पर त्रिवेणी में राष्ट्र प्रेम का जज़्बा कूट कूट कर भरा था, उनकी तीव्र इच्छा थी सेना में सेवाएं देने की। उन्होंने स्नातक के बाद CDS और SSB की परीक्षा उत्तीर्ण की, IMA (भारतीय सैन्य अकादमी) में उनका चयन हुआ..


IMA में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सिंह को सम्मानित किया गया, आवेदन फार्म पर त्रिवेणी ने गर्व से "इन्फेंट्री" भरा। (इन्फेंट्री- की पैदल सेना जो सबसे आगे रहकर दुश्मन का सामना करती है)
दिसंबर 2001 में देश के सर्वश्रेष्ठ सैन्य दस्तों में से एक 5 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री (5 JK-LI) में कमीशंड अधिकारी के रूप में त्रिवेणी की पदस्थापना हुई। श्रेष्ठ प्रदर्शन के चलते उन्हें कमांडो अभ्यास के लिए कॉलेज ऑफ़ कॉम्बैट भी भेजा गया।


31 दिसंबर 2003 को पठानकोट आर्मी क्लब में त्रिवेणी ने अपनी मंगेतर (10 मार्च को त्रिवेणी का विवाह होना था), परिवार और मित्रों के साथ नए साल का जश्न मनाया और अगले ही दिन 1 जनवरी 2004 को त्रिवेणी त्वरित प्रतिक्रिया दल के हिस्से के रूप में अपने सैन्य दस्ते में शामिल हुए।
उसके अगले दिन, 2 जनवरी को त्रिवेणी को जम्मू स्टेशन पर आतंकी हमले की सूचना मिली, त्रिवेणी को कमान अधिकारी निर्देशित किया गया की वे दस्ते को आगाह करें और QRT मौके पर भेजें, उन्हें इस ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी नही दी गयी थी,पर रजपूती खून कैसे पीछे हटता... त्रिवेणी ने सोचा कार्यवाही में देर होगी,जिस से और जानें जा सकती हैं...उन्होंने कमान अधिकारी से इस मिशन का नेतृत्व करने की इजाज़त मांगी, अप्रूवल मिलते ही वो अपने 5 कमांडो की टीम ले कर स्टेशन की ओर कूच कर गए, त्रिवेणी दुश्मनो का खात्मा करने के लिए इस कदर बेताब थे कि उन्होंने जल्दी पहुँचने के लिए अपने जीप चालक से कहा "गाड़ी पटरियों के पार चढ़ा दो" और कई पटरियां पार करते हुए वे मौके पर पहुँचे।
तब तक आतंकी 7 जाने ले चुके थे, मरने वालों मे 2 पुलिस वाले, 2 बीएसएफ जवान, 1 रेलवे पुलिस जवान और 2 आम नागरिक थे।

अपने कमांडो को पोजीशन लेने का निर्देश दे कर त्रिवेणी आगे बढ़े और भारी गोलीबारी के बीच घायल हो कर भी दो आतंकियों को मार गिराया, एक आतंकी रेल पुल के नीचे छिपा हुआ था जिसके निशाने पर 300 से ज़्यादा यात्री थे और वो उन सभी यात्रियों को पल भर में उड़ा सकता था, सिंह ने और बल का इंतज़ार नही किया, क्षात्र धर्म का पालन करते हुए सिंह आतंकी की ओर लपके, उसने सिंह पर कई गोलियाँ दागीं, ग्रेनेड से हमला किया, फिर भी सिंह अंततः उस तक पहुँच गए, सिर में गोली लगने के बावजूद त्रिवेणी सिंह ने उस आतंकी से निहत्थे द्वन्द किया और उसके प्राण ले लिये, गंभीर रूप से घायल त्रिवेणी वीरगति को प्राप्त हुए।

सिंह पूर्व में भी कई सैन्य ऑपरेशन का हिस्सा रहे, एक बार तो सिंह ने 2 भागते आतंकियों का खुले मैदान में पीछा कर उन्हें माँर गिराया था। त्रिवेणी जैसे धर्म-परायण, कर्तव्यनिष्ठ युवा, समाज के लिए प्रेरणा हैं।

धन्य है वो माँ जिसने ऐसे वीर सपूत को जन्म दिया।
अमर शहीद लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह ठाकुर को शत शत नमन, आप सदा याद किये जायेंगे।




डॉ• नीतीश सिंह सूर्यवंशी

Saturday 27 August 2016

अमर क्रांतिवीर ठा• रामप्रसाद तोमर (बिस्मिल)

जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खाई थी....क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी....
काकोरी और मैनपुरी काण्ड के सूत्रधार, स्वाधीनता संग्राम के नायक अमर शहीद ठाकुर रामप्रसाद तोमर (बिस्मिल) थे।
मध्य प्रदेश के एक तंवर राजपूत जमींदार परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले रामप्रसाद में देश प्रेम का जज़्बा बचपन से था।
चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह भी तोमर को अपना गुरु मानते थे।इनकी कविता "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" ने ना जाने कितने जोशीले नौजवानों में देश प्रेम की अलख जलायी।
ठाकुर रामप्रसाद तोमर, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक और राजेंद्र लाहिरी को काकोरी कांड के लिए फांसी की सज़ा सुनाई गयी।अंत समय में भी यही कविता ज़बान पर थी "सरफ़रोशी की तमन्ना...."
मगर अफ़सोस है कि रामप्रसाद, राजगुरु, भगत, रोशन, लाहिरी जैसे सैकड़ों वीरों के बलिदान को भुलाकर, अंग्रेजों के एजेंट को महात्मा बना दिया गया और देश 60 सालों के लिए ऐसे पापियों के पास चला गया ।
भारत माँ के इस वीर सपूत को शत शत नमन।

गोरखपुर जेल में लिखी तोमर की आत्मकथा का एक अंश निम्नलिखित है-
तोमरधार में चम्बल नदी के किनारे पर दो ग्राम आबाद हैं, जो ग्वालियर राज्य में बहुत ही प्रसिद्ध हैं, क्योंकि इन ग्रामों के निवासी बड़े उद्दण्ड हैं । वे राज्य की सत्ता की कोई चिन्ता नहीं करते । जमीदारों का यह हाल है कि जिस साल उनके मन में आता है राज्य को भूमि-कर देते हैंऔर जिस साल उनकी इच्छा नहीं होती, मालगुजारी देने से साफ इन्कार कर जाते हैं । यदि तहसीलदार या कोई और राज्य का अधिकारी आता है तो ये जमींदार बीहड़ में चले जाते हैं और महीनों बीहड़ों में ही पड़े रहते हैं । उनके पशु भी वहीं रहते हैं और भोजनादि भी बीहड़ों में ही होता है । घर पर कोई ऐसा मूल्यवान पदार्थ नहीं छोड़ते जिसे नीलाम करके मालगुजारी वसूल की जा सके । एक जमींदार के सम्बंधमें कथा प्रचलित है कि मालगुजारी न देने के कारण ही उनको कुछ भूमि माफी मेंमिल गई । पहले तो कई साल तक भागे रहे । एक बार धोखे से पकड़ लिये गए तो तहसील के अधिकारियों ने उन्हें बहुत सताया । कई दिन तक बिना खाना-पानी के बँधा रहने दिया । अन्त में जलाने की धमकी दे, पैरों पर सूखी घास डालकर आग लगवा दी । किन्तु उन जमींदार महोदय ने भूमि-कर देना स्वीकार न किया और यही उत्तर दिया कि ग्वालियर महाराज के कोष में मेरे कर न देने से ही घाटा न पड़ जायेगा । संसार क्या जानेगा कि अमुक व्यक्ति उद्दंडता के कारण ही अपना समय व्यतीत करता है । राज्य को लिखा गया, जिसका परिणाम यह हुआकि उतनी भूमि उन महाशय को माफी में दे दी गई । इसी प्रकार एक समय इन ग्रामों के निवासियों को एक अद्भुत खेल सूझा । उन्होंने महाराज के रिसाले के साठ ऊँट चुराकर बीहड़ों में छिपा दिए । राज्य को लिखा गया; जिस पर राज्य की ओर से आज्ञा हुई कि दोनों ग्राम तोप लगाकर उड़वा दिए जाएँ । न जाने किस प्रकार समझाने-बुझाने से वे ऊँट वापस किए गए और अधिकारियों को समझाया गया कि इतनेबड़े राज्य में थोड़े से वीर लोगों का निवास है, इनका विध्वंस नकरना ही उचित होगा । तब तोपें लौटाईं गईं और ग्राम उड़ाये जाने से बचे । ये लोग अब राज्य-निवासियोंको तो अधिक नहीं सताते, किन्तु बहुधा अंग्रेजी राज्य में आकर उपद्रव कर जाते हैं और अमीरों के मकानों पर छापा मारकर रात-ही-रात बीहड़ में दाखिल हो जाते हैं ।बीहड़ में पहुँच जाने पर पुलिस या फौज कोई भी उनका बाल बाँका नहीं कर सकती । ये दोनों ग्राम अंग्रेजी राज्य की सीमा से लगभग पन्द्रह मील की दूरी पर चम्बल नदी के तट पर हैं । यहीं के एक प्रसिद्ध वंश में मेंरे पितामह श्री नारायणलाल जी का जन्म हुआ था । वह कौटुम्बिक कलह औरअपनी भाभी के असहनीय दुर्व्यवहार के कारण मजबूर हो अपनी जन्मभूमि छोड़ इधर-उधर भटकते रहे । अन्त मेंअपनी धर्मपत्नी और दो पुत्रों के साथ वह शाहजहाँपुर पहुँचे । उनके इन्हीं दो पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र श्री मुरलीधर जी मेरे पिता हैं । उस समय इनकी अवस्था आठ वर्ष और उनके छोटे पुत्र - मेरे चाचा (श्री कल्याणमल) की उम्र छः वर्ष की थी.

IAS Kinjal Singh (DM/Collector Faizabad)

ANGEL IN DISGUISE

IAS Kinjal Singh, who is presently posted as the District Magistrate (Collector) of Faizabad district in Uttar Pradesh. On monday evening, somewhere around 7 to 8 pm, while she was passing through the chowk vegetable market, she spotted a roadside vegetable vendor on the footpath, it was Moona, a 75 year old widow who could barely walk properly. Miss Kinjal asked the price for 1 kg bitter gourd, Moona said ₹50, she paid her ₹1550, asked her where she lived and left. Moona happily reached her tin-shed house and told her granddaughter Reetu about the incident. Reetu is pursuing B.A. at Paramhans Degree college, Ayodhya. At around 11 pm when Moona & Reetu were about to sleep, a convoy of vehicles arrived at their place. It was the DM, Kinjal Singh along with other government officials and a team of doctors. When they entered the house their heart melt. They were living in a very poor condition. Miss Kinjal immediately ordered the District Supply Officer (who was also present there) to bring 5 kgs Pulse, 20 kgs flour, 50 kgs wheat, 40 kgs rice. She said, "i'll stay here until you get all these things."The officers left with immediate effect, all shops were closed by then but he had to obey the Collector's order. He somehow managed to find a shop, got everything loaded and reached Moona's place, the clock had struck 12, the DM was still there. She didn't just stop there, she ordered the Sub-divisional Magistrate Deepa Agrawal to get a table fan, an LPG gas cylinder & stove, 2 Sarees and slippers for Moona in the morning. The ADM and SDM arranged everything as per orders, the very next morning.DM Kinjal also promised Moona that cooking utensils will be sent to her, a handpump will be installed soon and a house too will be constructed for Moona as soon as possible. Moona blessed her numerous times.Today, while we find corrupt IAS officers in abundance, DM Kinjal Singh sets an example, I feel proud in sharing this, that people from our community are still abiding by the Kshatra Dharm.

IAS Garima Singh (Ex-IPS)

                                               
                                                    IAS GARIMA SINGH (Ex - IPS)


Garima Singh, a blend of beauty with brains, hails from Ballia, Uttar Pradesh. The distt. is know for it's legendary Rajputs like former Prime Minister Shri ChandraShekhar Singh, Shri SurajDeo Singh and others.
Garima completed her schooling from CMS, Lucknow which is the world's largest & one of India's most prestigious schools. ( Which i've also been a part of, Garima & my elder sister were classmates). After her schooling she moved to Noida and got admitted to another premiere Institute, St. Stephen's College. She pursued BA & MA (History) at Stephen's.
She cracked UPSC in her very first attempt in 2012 and bagged 109 All India Rank. She got the cadre of her choice, UP.At the young age of 25, she got posted as ASP, Lucknow and was praised by all for her dedication and hard work.
She played keyrole in solving the Mohanlalganj case and she was also the one of the key persons involved in settingup the famous women power helpline 1090.Later, she got promoted and was posted as SP, Jhansi.
She is known for her positive attitude towards service and is a very popular figure among the poor and downtrodden. Jhansi witnessed well-maintainedlaw and order, all thanks to Garima Singh.
This year, she cracked UPSC'15 exam again with All India Rank 55 and qualified for the Indian Administrative Services (IAS).She is a diligent officer with a vision and has made our community proud, i wish her all the good luck.

CHHAVI RAJAWAT

                                                   CHHAVI SINGH RAJAWAT


Chhavi was born in a Kachwah Rajput family in Jaipur. She went to Mayo Girls College, Rajasthan for her schooling and graduated from the top notch Lady Sri Ram College, Delhi. She pursued MBA in Pune.After completing her MBA, she worked for huge names like TOI and Carlson but it was soon that she realized that she wanted to bring a change, a real change. She quit her lucrative corporate job which paid her several lakhs and went back to her village 'Sodha' in Tonk district, Rajasthan which is about 60 KMS from Jaipur.She contested 'Gram Pradhan' elections and won. She became India's first woman 'Sarpanch' with an MBA degree.Her grandfather, Brigadier Raghubir Singh has also been the Sarpanch of Sodha.Chhavi has brought about the construction of over 42 roads, ensured regular supply of clean drinking water, solar panels to provide electricity have been installed as analternate source of power, city-like paved road have been constructed, got a bank in the village, brought about construction of more than 820 toilets in the village with 900 houses!When refused funding by the Govt. (She already exhausted all the funds granted to the Sarpanch for the welfare of the village), she herself raised funds. Various organizations, NGO's came to her aid.She was invited to address delegates at the "11th InfoPoverty World Conference" held at the United Nations!She has been honoured with the President's award and IBN's 'Young India Leader' award.Chaavi proudly sports jeans, aviators, rides horses, open jeeps, even tractors!She has a vision for rural upliftment and has come a long way. She has made our comunity & our country proud.

पंजाब के राज्यपाल विजयेंद्रपाल सिंह बदनौर


                               *विजयेंद्रपाल सिंह बदनौर* पंजाब के राज्यपाल नियुक्त किये गए।

*VijayendraPal Singh Badnore* appointed as the Governorof Punjab and administrator of Chadigarh.

कप्तान सिंह सोलंकी का कार्यकाल समाप्त होने पर वी•पी• सिंहबदनौर पंजाब के राज्यपाल नियुक्त किये गए।श्री वी•पी•सिंह राजस्थान में भीलवाड़ा जिले की रियासत बदनौर से हैं।वह चार बार विधायक रहे, चौथे कार्यकाल में मंत्री भी रहे।

वी•पी•सिंह 2 बार लोक सभा सांसद भी रहे फिर 2010 में राज्य सभा सांसद बने।बीते माह इनका राज्य सभा कार्यकाल समाप्त हुआ।श्री सिंह जनसंघ के समय से पार्टी से जुड़े हैं एवं मोदी के करीबी माने जाते हैं।

इन्होंने प्रतिष्ठित मेयो कॉलेज से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की फिर ACSI से स्नातक किया।राज्यपाल जैसे गरिमामय पद पर नियुक्ति पर श्री सिंह को शुभकामनाएं।

डॉ• नीतीश सिंह सूर्यवंशी

Friday 26 August 2016

हिन्दू धर्मरक्षक राणा सांगा


हिन्दुस्तान की धरती पर ऐसे शूरवीरों ने जन्म लिया है कि उनके विषय में लिखने में स्याही कम पड़ जाए...पर दुर्भाग्यवश, राष्ट्र की अखंडता और धर्मरक्षा के लिए आजीवन संघर्षरत रहे उन वीरों को इतिहास की किताबों और पाठ्यक्रम में या तो सीमित या बिलकुल भी जगह नहीं मिली। ऐसे ही एक महापराक्रमी शासक को यह लेख समर्पित है। एक ऐसे धर्मरक्षक योद्धा जिन्होंने मातृभूमि, धर्म और सम्मान की रक्षा के लिएअपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

                                                    *महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा)*


12 अप्रैल 1484 को मालवा में मेवाड़ के सूर्यवंशी सिसोदिया राजकुल में राणा सांगा का जन्म हुआ।1507-1508 में राणा सांगा अपने पिता राणा रायमल के उत्तराधिकारी बने। इनका विवाह रानी कर्णावती से हुआ।राणा ने अपने शासन काल में निम्नलिखित युद्ध लड़े।


*ईडर के युद्ध् (1514)*
ईडर राजस्थान-गुजरातसीमा पर स्थित राठौड़ों की गद्दी थी जिसके उत्तराधिकारी रायमल थे पर भारमल उस पर अवैध रूप से काबिज़ था।राणा ने भारमल को पराजित कर रायमल को ईडर की कमान दिलाई।भारमल हार कर मदद के लिए गुजरात के सुल्तान मुजफ़्फ़र के पास चला गया।ईडर की गद्दी के लिए तीसरे युद्ध में महाराणा की सेना का सामान सुल्तान मुज़फ्फर द्वारा भेजे गए सैन्य अधिकारी ज़ाहिर-उल-मुल्क से हुआ। युद्ध में ज़ाहिर मारा गया और सुल्तान की फ़ौज राजपूतों के आगे ज़्यादा देर ना टिकी और भाग खड़ी हुई।बौखलाहट में सुल्तान अपने खास योद्धा नुसरत-उल-मुल्क को भेजता है, रायमल उसे भी पराजित कर देते हैं।


*खतौली का युद्ध 1518*
विदेशी आततायी इब्राहिम लोधी से मातृभूमि को मुक्त कराने निकली राणा की सेना ने कई ठिकानों पर कब्ज़े शुरू कर दिए जिसकी खबर लोधी को जब लगी तो उसने मेवाड़ के लिए कूच किया। महाराणा भी अपनी सेना के साथ उसका मुकाबला करने निकल पड़े। दोनों का आमना सामना खतौली में हुआ।निर्भीक राजपूतों के आगे सुल्तान की फ़ौज 5 घण्टों से ज़्यादा नहीं टिकी, इब्राहिम लोधी अपनी सेना के साथ भाग खड़ा हुआ। एक लोधी शहज़ादा बन्दी भी बनाया गया।इस युद्ध में महाराणा की बाँह कट गयी एवं एक पैर सदा के लिए बेकारहो गया।


*धौलपुर का युद्ध 1519*
इस युद्ध में राणा के साथ थे राव विरमदेव मेड़ता, रतन सिंह चुंडावत, माणिकचन्द्र चौहान, चन्द्रभान चौहान, रावल उदय सिंह, राणा अज्ज, राव रामदास, गोकलदास परमार, रावल उदय सिंह वगारी, मेदिनी राय।खतौली की हार का बदला लेने के लिए इस बार पूरी तैयारी के साथ आया था इब्राहिम लोधी। पर रणभूमि में लोधी की फ़ौज यूँ बिखरी जैसे किसी वृक्ष की सूखी पत्तियां हों।राणा की सेना का सामना मियाँ माखन, खान फुरात, हाजी खान, दौलत खान, अल्लाहदद खान एवं यूसुफ़ खान की हज़ारों की फ़ौज से हुआ। पर कुछ ही देर में राजपूतों की तलवारों में वो रक्तपात मचाया कि सुल्तान की सेना भागने को मजबूर हो गयी। राणा की सेना में सुल्तान की फ़ौज को बयाना तक धकेल दिया।हुसैन खान ने दिल्ली में मुस्लिम दरबारियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि "सैकड़ों दफ़ा लानत है कि 30,000 की फ़ौज चंद राजपूतों से हार गयी"इस युद्ध के बाद मालवा जिस पर मुहम्मद शाह काबिज़ था, उस पर राणा का आधिपत्य हो गया।


*गागरोन का युद्ध 1519*
राणा सांगा द्वारा मेदिनी राय को दी गयी जागीर पर धीरे-धीरे महमूद ख़िलजी काबिज़ होने लगा। राणा ने उसे सबक सिखाने की ठान ली औरयुद्ध के लिए चित्तौड़ से कूच किया, उनके साथ राव विरमदेव थे। राणाऔर राव का सामना हुआ महमूद ख़िलजी और आसिफ खान से। राजपूतों के आक्रमण से ख़िलजी की विशाल सेना में हाहाकार मच गयी। उसके लगभग सभी प्रमुख सैन्य अधिकारी मारे गए और तकरीबन सारी सेना का सर्वनाश हो गया। आसिफ खान का पुत्र मारा गया और महमूद ख़िलजी को बन्दी बना लिया गया।लेकिन परंपरागत राजपूती उदारता का परिचय देते हुए राणा ने उसे मुक्त किया एवं सम्मान सहित उसका राज्य लौटा दिया पर ख़िलजी ने राणा की अधीनता स्वीकार करते हुए नज़राने के रूप में अपना पुश्तैनी रत्न-जड़ित मुकुट और कमरबन्द राणा को दे दिया।इतिहासकार अबू फ़ज़ल ने राणा की सतत प्रशंसा की।


*गुजरात का युद्ध 1520*
ईडर की कमान वापस राव रायमल को दिलाने एवं मुस्लिम सुल्तान से गुजरात को मुक्त कराने राणा ने युद्ध का ऐलान किया।राणा अत्यंत महत्वाकांक्षी थे, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना उनका उद्देश्य था।कहा जाता है कि निज़ाम-उल-मुल्क के सामने भरे दरबार में एक बार किसी भाट/चारण ने राणा की बहादुरी और उदारता की भूरि-भूरि प्रशंसा की जिससे खिन्न हो कर निज़ाम उल मुल्क ने राणा के लिए अपमानजनक शब्द कहे, इस उद्दंडता की सज़ा राणा निज़ाम को देना चाहते थे।युद्ध का आवाह्न कर राणा ने गुजरात की ओर कूच की। मुज़फ्फर शाह को जैसे ही इसकी भनक लगी वो राणा का सामना किये बगैर किवाम उल मुल्क को अहमदाबाद का राजपाल बना कर मुहम्मदाबाद भाग गया।महाराणा 40000 घोड़ों और पैदल सैनिकों के साथ वागड़ पहुँचे, वहाँरावल उदय सिंह डूंगरपुर 5000 सैनिकों समेत उनके साथ हो लिए, रावविरमदेव मेड़तिया 5000 सैनिकों के साथ आये और राव गंगा ने अपने पुत्रों को 7000 सैनिकों के साथ भेजा।राणा तेज़ी से ईडर पहुँचे, निज़ाम उल मुल्क राणा के आने की सूचना पाकर अपनी डींगें भूलकर हिम्मतनगर की ओर भागा। राणा ने ईडर की कमान वापस रायमल के हाथों में दी और निज़ाम उल मुल्क की तलाश में निकले,राणा ने हिम्मतनगर गढ़ की घेराबन्दी करा दी, भीषण रक्तपात हुआ, इस दौरान राणा की सेना के एक शीर्ष अधिकारी डूँगर सिंह चौहान गंभीर रूप से घायल हो गए। राजपूतों ने गढ़ की सारी मुस्लिम सेना का वध करदिया पर मुबारिज़ उल मुल्क बच निकला। वह किले के साथ बहती हुई नदी के किनारे पर रुका, उसके साथ सुल्तान द्वारा भेजा हुआ सैन्य दस्ता था।राणा ने उन पर आक्रमण कर दिया, सुल्तान की फ़ौज भाग छूटी और उल मुल्क अहमदनगर की ओर भागा। ब्रिटिश प्रशासक एलेग्जेंडर फोर्ब्स लिखते हैं, " इस्लाम के व्यूह को राजपूतों के रोष ने ध्वस्त कर दिया, सुल्तान की सेना के कई शीर्ष अधिकारी मारे गए, मुबारिज़ उल मुल्क गंभीर रूप से घायल होगया,उनके हाथी छीन लिए गए..फ़ौज में हाहाकार मच गयी। राणा ने वाडनगर के ब्राह्मणों को छोड़ दिया, विसलनगर के राजपाल हातिम खान का वध किया। जब राणा ने देखा की सुल्तान अब वापस नहीं आएगा और बड़बोले निज़ाम उल मुल्क को भी उसकी उद्दंडता का अच्छा सबक मिल गया है तो वे चित्तौड़ लौट गये।


*खानवा का युद्ध 1527*
बाबर ने उत्तर भारत में भयंकर लूटपाट मचाई, कई निर्दोष हिंदुओं की निर्मम हत्या की। राणा ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना और और राष्ट्र को विदेशी आक्रमणकारियों से मुक्त कराने के उद्देश्य सेबाबर के विरुद्ध युद्ध का आवाह्न किया और बाबर को देश छोड़ने का आदेश दिया।पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर जान चुका था कि राणा उसके लिए बहुत बड़ा खतरा थे। राणा ने आगरा की ओर कूच किया,बाबर ने धौलपुर, ग्वालियर और बयाना की ओर सैन्य टुकड़ियां भेजीं।इधर राणा के नेतृत्व में सभी राजपूत राजघराने एक हुए (जालोर, सिरोही, हाड़ौती,डूँगरपुर, धुआंधार, आमेर, मारवाड़, चन्देरी-मालवा) मेवात के मैड़ राजपूत भी राणा के साथ थे। राजपूतों की आक्रामकता और वीरता सुप्रसिद्ध थी, बाबर की सेना में भय व्याप्त था। बाबर नेराज्य की सारी मदिरा बहा दी, और सैनिकों को किसी भी प्रकार का नशाकरने से मना कर दिया ताकि युद्ध के दौरान वो कमज़ोर न पड़ें। बाबर ने अपनी फ़ौज को राणा के विरुद्ध युद्ध को जिहाद बताया और दरबारियों एवं सैनिकों से क़ुरांन की कसमें खिलवायीं।

_युद्ध -16 मार्च, 1527_
फतेहपुर सीकरी के निकट खानवा।
बाबर ने रण क्षेत्र का बारीकी से निरीक्षण किया एवं योजनाबद्ध तरीके से व्यूह रचा, बंदूकधारियों एवं तोपों को स्थापित किया।यूँ तो राणा सांगा ने कई युद्ध लड़े थे और सभी जीते थे, पर वो परम्परागत तरीके से जीते युद्ध थे। राणा ने हमला बोला, जब राणा कीसेना बाबर द्वारा रचित व्यूह में फंस गई तब बाबर ने तोपों और बंदूकों से हमला करवाया। भीषण रक्तपात हुआ। अनेक राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए, राणा गंभीर रूप से घायल हुए। 30 जनवरी 1528 को राणा ने देह त्याग दी, अखण्ड हिन्दू राष्ट्र का उनका स्वप्न उन्हीं के साथ चला गया। अंत समय में उनके शरीर पर 80 घाव थे। एक हाथ, एक पैर और एक आँख खो कर इस महाबली योद्धा ने बाबर जैसे शक्तिशाली सुल्तान से लोहा लिया और दिल्ली की सल्तनत हिला कर रख दी। अपने पूरे शासन काल में राणा ने सभी युद्ध जीते। तमाम इतिहासकारों का कहना है कि अगर बाबर के पास वो आधुनिक तोपें और बंदूकें ना होतीं तो वो राणा और राजपूतों की तलवारों को कभी पराजित नहीं कर पाता। राणा के साथ एक युग का अंत हुआ,उन जैसा महाबली कुशल सुशासक योद्धा दुबारा नहीं जन्मा। मातृभूमि की लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इस शूरवीर को कोटि-कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि।
*जय भवानी*
*जय महाराणा*
डॉ• नीतीश सिंह सूर्यवंशी

Thursday 25 August 2016

बीकानेर के राजपूत शेर ऋषिराज सिंह IPS

                      
                                बीकानेर के राजपूत शेर, दबंग IPS श्री ऋषिराज सिंह भाटी

चित्र में सफेद कपड़ों में हैं केरल के तत्कालीन गृह मंत्री रमेश चेन्नितला, जहाँ बाकी अधिकारियों ने तत्परता के साथ उन्हें सलूट किया, भाटी खड़े भी नहीं हुए। 1985 बैच के IPS, श्री ऋषिराज सिंह भाटी वर्तमान में केरल राज्य के आबकारी आयुक्त हैं।IPS ऋषिराज सिंह भाटी की छवि आम जनता में स्वच्छ एवं सकारात्मक है। इनके निशाने पर साथी IPS अफसर, मातहत अधिकारी, नेता एवं व्यवसायी रहे हैं। 

पुलिस विभाग गृह मंत्री के अधीन होता है, पर भ्रष्ट मंत्रियों के आगे भाटी कभी ना झुके, नेता-मंत्री इन्हें दबाने में जुटे रहे, पर नेता प्रतिपक्ष का इन्हें समर्थन था। इन्होंने कई बड़े नेताओं एवं व्यवसायियों के ठिकानों पर आकस्मिक छापेमारी की जिसके चलते KSEB के सतर्कता विभाग ने विद्युत चोरी के दोषियों पर 35 करोड़ का जुर्माना लगाया, इस कार्यवाही से सत्तापक्ष भाटी से ख़फ़ा हो गया।
कार्यवाही से क्षुब्ध हो कर सरकार ने ADGP रैंक अधिकारी भाटी को KSEB के मुख्य सतर्कता अधिकारी पद से हटा दिया। जिस प्रतिष्ठान पर कार्यवाही हुई वो तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमन चांडी के करीबी का था।तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री वी•एस•अच्युतानंदन भाटी के करीबी एवं समर्थक हैं, उन्होंने उनके तबादले का मुद्दा उठाया।उसी दिन त्रिशूर में हुए पासिंग आउट परेड के कार्यक्रम में तत्कालीन गृहमंत्री रमेश चेन्नितला एवं भाटी अतिथि के रूप में आमंत्रित थे, भाटी प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हुए अपनी कुर्सी से भी नहीं उठे और चेन्नितला को अनदेखा कर दिया। उनका ऐसा करना, गलत तरीके से हुए अपने तबादले के विरोध का परिचायक था। 

भाटी अपने साहसिक रवैये, निर्भीक स्वभाव एवं ईमानदार छवि के चलते लोकप्रिय हैं।राज्य परिवहन आयुक्त रहते हुए उन्होंने केरल में बढ़ते सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए कई कदम उठाये। उन्होंने विभाग को ये निर्देशित किया के वे सुनिश्चित करें की हर सार्वजनिक वाहन में गति नियंत्रक उपकरण लगा हो। कुछ मंत्रियों ने इस फैसले का विरोध किया क्योंकि उनकी खुद की बसें चलती हैं।जब भाटी ने दुपहिया वाहन चालकों के लिए हेलमेट, एवं कार-सवार लोगों के लिए सीट बेल्ट लगाना अनिवार्य किया तब लोकप्रिय कलाकार मोहनलाल ने उन्हें "हीरो" और "सितारे की संज्ञा दी।

केंद्रीय मंत्री गोपीनाथ मुंडे की सड़क हादसे में मौत के बाद भाटी कार की पिछली सीटों पर भी सीट बेल्ट अनिवार्य करना चाहते थे, ये तत्कालीन परिवहन मंत्री राधाकृष्णन को रास नहीं आया और भाटी का तबादला कर दिया गया।वे वापस KSEB के मुख्य सतर्कता अधिकारी बने और विद्युत चोरी में लिप्त बड़े व्यवसायियों एवं नेताओं के विरुद्ध कार्यवाही करने लगे।2007 में भाटी ने एंटी पायरेसी ड्राइव के दौरान साथी IPS टॉमिन जे• के स्टूडियो पर छापे की कार्यवाही की, टॉमिन सत्ताधारी CPI के करीबी थे।इस कार्यवाही के चलते भाटी सस् पपेंड हुए, पर उनके समर्थक तत्कालीन मुख्यमंत्री अच्युतानंदन ने DGP को आदेश दिया कि भाटी को तत्काल प्रभाव से बहाल किया जाए।

2004 में IG यातायात रहते हुए राजमार्ग पर पुलिस की अवैध वसूली की शिकायतें मिलने पर भाटी ने स्टिंग ऑपरेशन किये, वे लुंगी पहन ट्रक में हेल्पर बन सवार हो जाते और अवैध वसूली करते पुलिस कर्मियों को रंगे हाथ पकड़ते।

2013 में केरल वापस जाने के पहले IPS भाटी प्रतिनियुक्ति पर मुम्बई में CBI के जॉइन्ट डायरेक्टर भी रहे। इस दौरान उन्होंने नेशनल डिफेंस अकादमी में बड़े भर्ती रैकेट का भंडाफोड़ किया साथ हीकैंटीन स्टोर विभाग में भी गड़बड़-घोटाला उजागर किया। वे इस दौरान बहुचर्चित आदर्श हाउसिंग सोसाइटी घोटाले की जाँच टीम की अगुवाई कर रहे थे। जब CBI आदर्श घोटाले में चार्जशीट दाखिल कर दी तब भाटी को आर्थिक अपराध शाखा में स्थानांतरित कर दिया गया।

भाटी ने भोपाल में भी अपनी सेवाएं दीं, वहाँ वे एंटी-करप्शन यूनिट का हिस्सा रहे।श्री भाटी 5 वर्ष SPG में DIG के पद पर भी रहे।

राजपूत गौरव श्री भाटी निम्न विभागों/पदों पर रहे

•वर्तमान में राज्य आबकारी आयुक्त
•DGP (कारागार महानिदेशक)
•ADGP
•KSEB (मुख्या सतर्कता अधिकारी)
•परिवहन आयुक्त
•CBI Mumbai (संयुक्त निदेशक)
•EOW (निदेशक-आर्थिक अपराध शाखा)
•ACB भोपाल
•IG (यातायात)
•SPG-DIG एवं अन्य...


डॉ• नीतीश सिंह सूर्यवंशी

Wednesday 24 August 2016

दशम सिख गुरु गोबिंद के गुरु, श्री बज्जर सिंह राठौड़

*बज्जर सिंह राठौड़*

_बज्जर सिंह जी राठौड़ का नाम सिख इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।_
_वे दशम सिख गुरु गोबिंद राय के गुरु थे। इन्होंने गुरु गोबिंद को तीरंदाज़ी, घुड़सवारी, तलवारबाज़ी, निहत्थे युद्ध, बन्दूक चलाने से लेकर कई अन्य प्रकार का सैन्य प्रशिक्षण दिया।_

_*बज्जर सिंह राठौड़* ने अन्य खत्री सिख गुरुओं को भी शस्त्र विद्या सिखाई।_
_युद्ध कौशल में उनका कोई सानी नहीं था। उन्होंने कई राजपूत-मुग़लयुद्ध लड़े थे।_

_जिस प्रकार उन्होंने आम किसानों और बणियों को सैन्य प्रशिक्षण दिया वो सिख इतिहास में एक नये अध्याय के रूप में दर्ज हुआ।_

*बज्जर सिंह राठौड़ महान सूर्यवंशी राठौड़ राजकुल में जन्मे थे, वेमारवाड़ राजघराने के वंशज थे*

वंशावली-_राव सीवा> राव अस्थान > राव दहाड़> राव रायपाल > राव कान्हापाल> राव जलसी > राव चाडा> राव टीडा> राव सलखो> राव वीरमदेव> राव चंद > राव रिदमल> राव जोधा > राव लाखा> राव जॉना> राव राम सिंह प्रथम > राव सलहा> राव नाथू> राव ऊदा (ऊदाने सिंह राठौड़- 1583 में पंजाब आये)> राव मदन> राव सुखराज> राव राम सिंह द्वितीय> राव बज्जर

_हिंदुस्तान की अखण्डता से लेकर सिख साम्राज्य की स्थापना में सर्वोच्च योगदान राजपूतों का रहा है, राजपूत राजकुमारों ने मुग़लों से सिख गुरुओं की रक्षा करते हुए प्राण भी दे दिए, पर प्रण ना भूले, सिख आस्था और साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अनगिनत राजपूतों में से महानतम योद्धाओं की सूची निम्नलिखित है, सभी पर संक्षिप्त लेख शीघ्र उपलब्ध होगा।_

*बज्जर सिंह राठौड़*
*बन्दा बहादुर सिंह*
*भगवंत सिंह*
*बाज सिंह परमार*
*भाई बछित्तर सिंह*
*भाई मणि सिंह*
*संगत सिंह मिन्हस*
*भाई महा सिंह*
*मति सिंह*
*गुलाब सिंहः*
*भाई दुर्गु सिंह*
*अमर सिंह*
*रणजीत सिंह*
*दिलीप सिंह* एवं अन्य
*गौरवपूर्ण क्षत्रिय राजपूतों पर मान करें और हिंदुस्तान के इतिहास में उनके योगदान को सराहें*

_*Dr. Nitish Singh Suryavanshi*_