Thursday 1 September 2016

राष्ट्र गौरव अमर शहीद लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह





अमर शहीद लेफ्टिनेंट ठा• त्रिवेणी सिंह

देश की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह का नाम इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है।
2 जनवरी 2004 को जम्मू रेलवे स्टेशन पर लश्कर-ए-तैयबा द्वारा किये गए आतंकी हमले में त्रिवेणी सिंह ने अदम्य साहस और अद्भुत वीरता का परिचय देते हुए आतंकियों को मार गिराया और सैकड़ों यात्रियों के प्राण बचाये, हमले में गंभीर रूप से घायल त्रिवेणी वीरगति को प्राप्त हुए।


देह त्यागने के पूर्व सिंह ने अपने कमान अधिकारी को सलूट करते हुए कहा "मिशन पूरा हुआ सर"
विशिष्ट बहादुरी के लिए सिंह को को भारत के सर्वोच्च (असैनिक काल) वीरता पुरस्कार अशोक चक्र से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति द्वारा यह सम्मान त्रिवेणी के पिता कैप्टेन जन्मेज सिंह को दिया गया।
त्रिवेणी के कमान अधिकारी मेजर जनरल राजेंद्र सिंह ने एक साक्षात्कार के दौरान कहा "मुझे गर्व है त्रिवेणी सिंह पर, जिन्होंने अपने शरीर पर कई गोलियों और ग्रेनेड का हमला झेल कर भी आत्मघाती हमलावरों को मार गिराया, यह आज तक की सबसे कम समय में पूरी की गयी सैन्य कार्यवाही है।"
त्रिवेणी चाहते तो और बल का इंतज़ार करते, मुठभेड़ घण्टों/दिनों तक चलती और कई जानें जातीं...पर वो अपने प्राणों की परवाह किये बगैर अकेले दुश्मनो पर टूट पड़े।


त्रिवेणी सिंह ठाकुर का जन्म 1 फ़रवरी 1978 को बिहार के नामकुन में हुआ (वर्तमान में झारखण्ड), वे पंजाब में पले-बढे।
सिंह ने कराटे, तैराकी, एथलेटिक्स में राष्ट्रीय स्तर पर स्वर्ण पदक जीते थे।
नवल अकादमी में चयन होने के बावजूद घर वालों की इच्छा के चलते उन्होंने पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में बी.एससी एग्रीकल्चर में दाखिला लिया। त्रिवेणी के पिता चाहते थे की वे कृषि में स्नातक कर के उनके व्यवसाय को आगे बढ़ाएं। सिंह परिवार का पंजाब में 40 एकड़ का फार्म है, त्रिवेणी के पिता श्री जन्मेज सिंह रिटायर्ड फौजी हैं, वे कप्तान के पद से सेवानिवृत्त हुए।


पर त्रिवेणी में राष्ट्र प्रेम का जज़्बा कूट कूट कर भरा था, उनकी तीव्र इच्छा थी सेना में सेवाएं देने की। उन्होंने स्नातक के बाद CDS और SSB की परीक्षा उत्तीर्ण की, IMA (भारतीय सैन्य अकादमी) में उनका चयन हुआ..


IMA में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए सिंह को सम्मानित किया गया, आवेदन फार्म पर त्रिवेणी ने गर्व से "इन्फेंट्री" भरा। (इन्फेंट्री- की पैदल सेना जो सबसे आगे रहकर दुश्मन का सामना करती है)
दिसंबर 2001 में देश के सर्वश्रेष्ठ सैन्य दस्तों में से एक 5 जम्मू एंड कश्मीर लाइट इन्फेंट्री (5 JK-LI) में कमीशंड अधिकारी के रूप में त्रिवेणी की पदस्थापना हुई। श्रेष्ठ प्रदर्शन के चलते उन्हें कमांडो अभ्यास के लिए कॉलेज ऑफ़ कॉम्बैट भी भेजा गया।


31 दिसंबर 2003 को पठानकोट आर्मी क्लब में त्रिवेणी ने अपनी मंगेतर (10 मार्च को त्रिवेणी का विवाह होना था), परिवार और मित्रों के साथ नए साल का जश्न मनाया और अगले ही दिन 1 जनवरी 2004 को त्रिवेणी त्वरित प्रतिक्रिया दल के हिस्से के रूप में अपने सैन्य दस्ते में शामिल हुए।
उसके अगले दिन, 2 जनवरी को त्रिवेणी को जम्मू स्टेशन पर आतंकी हमले की सूचना मिली, त्रिवेणी को कमान अधिकारी निर्देशित किया गया की वे दस्ते को आगाह करें और QRT मौके पर भेजें, उन्हें इस ऑपरेशन की ज़िम्मेदारी नही दी गयी थी,पर रजपूती खून कैसे पीछे हटता... त्रिवेणी ने सोचा कार्यवाही में देर होगी,जिस से और जानें जा सकती हैं...उन्होंने कमान अधिकारी से इस मिशन का नेतृत्व करने की इजाज़त मांगी, अप्रूवल मिलते ही वो अपने 5 कमांडो की टीम ले कर स्टेशन की ओर कूच कर गए, त्रिवेणी दुश्मनो का खात्मा करने के लिए इस कदर बेताब थे कि उन्होंने जल्दी पहुँचने के लिए अपने जीप चालक से कहा "गाड़ी पटरियों के पार चढ़ा दो" और कई पटरियां पार करते हुए वे मौके पर पहुँचे।
तब तक आतंकी 7 जाने ले चुके थे, मरने वालों मे 2 पुलिस वाले, 2 बीएसएफ जवान, 1 रेलवे पुलिस जवान और 2 आम नागरिक थे।

अपने कमांडो को पोजीशन लेने का निर्देश दे कर त्रिवेणी आगे बढ़े और भारी गोलीबारी के बीच घायल हो कर भी दो आतंकियों को मार गिराया, एक आतंकी रेल पुल के नीचे छिपा हुआ था जिसके निशाने पर 300 से ज़्यादा यात्री थे और वो उन सभी यात्रियों को पल भर में उड़ा सकता था, सिंह ने और बल का इंतज़ार नही किया, क्षात्र धर्म का पालन करते हुए सिंह आतंकी की ओर लपके, उसने सिंह पर कई गोलियाँ दागीं, ग्रेनेड से हमला किया, फिर भी सिंह अंततः उस तक पहुँच गए, सिर में गोली लगने के बावजूद त्रिवेणी सिंह ने उस आतंकी से निहत्थे द्वन्द किया और उसके प्राण ले लिये, गंभीर रूप से घायल त्रिवेणी वीरगति को प्राप्त हुए।

सिंह पूर्व में भी कई सैन्य ऑपरेशन का हिस्सा रहे, एक बार तो सिंह ने 2 भागते आतंकियों का खुले मैदान में पीछा कर उन्हें माँर गिराया था। त्रिवेणी जैसे धर्म-परायण, कर्तव्यनिष्ठ युवा, समाज के लिए प्रेरणा हैं।

धन्य है वो माँ जिसने ऐसे वीर सपूत को जन्म दिया।
अमर शहीद लेफ्टिनेंट त्रिवेणी सिंह ठाकुर को शत शत नमन, आप सदा याद किये जायेंगे।




डॉ• नीतीश सिंह सूर्यवंशी

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