Friday 26 August 2016

हिन्दू धर्मरक्षक राणा सांगा


हिन्दुस्तान की धरती पर ऐसे शूरवीरों ने जन्म लिया है कि उनके विषय में लिखने में स्याही कम पड़ जाए...पर दुर्भाग्यवश, राष्ट्र की अखंडता और धर्मरक्षा के लिए आजीवन संघर्षरत रहे उन वीरों को इतिहास की किताबों और पाठ्यक्रम में या तो सीमित या बिलकुल भी जगह नहीं मिली। ऐसे ही एक महापराक्रमी शासक को यह लेख समर्पित है। एक ऐसे धर्मरक्षक योद्धा जिन्होंने मातृभूमि, धर्म और सम्मान की रक्षा के लिएअपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।

                                                    *महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा)*


12 अप्रैल 1484 को मालवा में मेवाड़ के सूर्यवंशी सिसोदिया राजकुल में राणा सांगा का जन्म हुआ।1507-1508 में राणा सांगा अपने पिता राणा रायमल के उत्तराधिकारी बने। इनका विवाह रानी कर्णावती से हुआ।राणा ने अपने शासन काल में निम्नलिखित युद्ध लड़े।


*ईडर के युद्ध् (1514)*
ईडर राजस्थान-गुजरातसीमा पर स्थित राठौड़ों की गद्दी थी जिसके उत्तराधिकारी रायमल थे पर भारमल उस पर अवैध रूप से काबिज़ था।राणा ने भारमल को पराजित कर रायमल को ईडर की कमान दिलाई।भारमल हार कर मदद के लिए गुजरात के सुल्तान मुजफ़्फ़र के पास चला गया।ईडर की गद्दी के लिए तीसरे युद्ध में महाराणा की सेना का सामान सुल्तान मुज़फ्फर द्वारा भेजे गए सैन्य अधिकारी ज़ाहिर-उल-मुल्क से हुआ। युद्ध में ज़ाहिर मारा गया और सुल्तान की फ़ौज राजपूतों के आगे ज़्यादा देर ना टिकी और भाग खड़ी हुई।बौखलाहट में सुल्तान अपने खास योद्धा नुसरत-उल-मुल्क को भेजता है, रायमल उसे भी पराजित कर देते हैं।


*खतौली का युद्ध 1518*
विदेशी आततायी इब्राहिम लोधी से मातृभूमि को मुक्त कराने निकली राणा की सेना ने कई ठिकानों पर कब्ज़े शुरू कर दिए जिसकी खबर लोधी को जब लगी तो उसने मेवाड़ के लिए कूच किया। महाराणा भी अपनी सेना के साथ उसका मुकाबला करने निकल पड़े। दोनों का आमना सामना खतौली में हुआ।निर्भीक राजपूतों के आगे सुल्तान की फ़ौज 5 घण्टों से ज़्यादा नहीं टिकी, इब्राहिम लोधी अपनी सेना के साथ भाग खड़ा हुआ। एक लोधी शहज़ादा बन्दी भी बनाया गया।इस युद्ध में महाराणा की बाँह कट गयी एवं एक पैर सदा के लिए बेकारहो गया।


*धौलपुर का युद्ध 1519*
इस युद्ध में राणा के साथ थे राव विरमदेव मेड़ता, रतन सिंह चुंडावत, माणिकचन्द्र चौहान, चन्द्रभान चौहान, रावल उदय सिंह, राणा अज्ज, राव रामदास, गोकलदास परमार, रावल उदय सिंह वगारी, मेदिनी राय।खतौली की हार का बदला लेने के लिए इस बार पूरी तैयारी के साथ आया था इब्राहिम लोधी। पर रणभूमि में लोधी की फ़ौज यूँ बिखरी जैसे किसी वृक्ष की सूखी पत्तियां हों।राणा की सेना का सामना मियाँ माखन, खान फुरात, हाजी खान, दौलत खान, अल्लाहदद खान एवं यूसुफ़ खान की हज़ारों की फ़ौज से हुआ। पर कुछ ही देर में राजपूतों की तलवारों में वो रक्तपात मचाया कि सुल्तान की सेना भागने को मजबूर हो गयी। राणा की सेना में सुल्तान की फ़ौज को बयाना तक धकेल दिया।हुसैन खान ने दिल्ली में मुस्लिम दरबारियों पर कटाक्ष करते हुए कहा कि "सैकड़ों दफ़ा लानत है कि 30,000 की फ़ौज चंद राजपूतों से हार गयी"इस युद्ध के बाद मालवा जिस पर मुहम्मद शाह काबिज़ था, उस पर राणा का आधिपत्य हो गया।


*गागरोन का युद्ध 1519*
राणा सांगा द्वारा मेदिनी राय को दी गयी जागीर पर धीरे-धीरे महमूद ख़िलजी काबिज़ होने लगा। राणा ने उसे सबक सिखाने की ठान ली औरयुद्ध के लिए चित्तौड़ से कूच किया, उनके साथ राव विरमदेव थे। राणाऔर राव का सामना हुआ महमूद ख़िलजी और आसिफ खान से। राजपूतों के आक्रमण से ख़िलजी की विशाल सेना में हाहाकार मच गयी। उसके लगभग सभी प्रमुख सैन्य अधिकारी मारे गए और तकरीबन सारी सेना का सर्वनाश हो गया। आसिफ खान का पुत्र मारा गया और महमूद ख़िलजी को बन्दी बना लिया गया।लेकिन परंपरागत राजपूती उदारता का परिचय देते हुए राणा ने उसे मुक्त किया एवं सम्मान सहित उसका राज्य लौटा दिया पर ख़िलजी ने राणा की अधीनता स्वीकार करते हुए नज़राने के रूप में अपना पुश्तैनी रत्न-जड़ित मुकुट और कमरबन्द राणा को दे दिया।इतिहासकार अबू फ़ज़ल ने राणा की सतत प्रशंसा की।


*गुजरात का युद्ध 1520*
ईडर की कमान वापस राव रायमल को दिलाने एवं मुस्लिम सुल्तान से गुजरात को मुक्त कराने राणा ने युद्ध का ऐलान किया।राणा अत्यंत महत्वाकांक्षी थे, हिन्दू राष्ट्र की स्थापना उनका उद्देश्य था।कहा जाता है कि निज़ाम-उल-मुल्क के सामने भरे दरबार में एक बार किसी भाट/चारण ने राणा की बहादुरी और उदारता की भूरि-भूरि प्रशंसा की जिससे खिन्न हो कर निज़ाम उल मुल्क ने राणा के लिए अपमानजनक शब्द कहे, इस उद्दंडता की सज़ा राणा निज़ाम को देना चाहते थे।युद्ध का आवाह्न कर राणा ने गुजरात की ओर कूच की। मुज़फ्फर शाह को जैसे ही इसकी भनक लगी वो राणा का सामना किये बगैर किवाम उल मुल्क को अहमदाबाद का राजपाल बना कर मुहम्मदाबाद भाग गया।महाराणा 40000 घोड़ों और पैदल सैनिकों के साथ वागड़ पहुँचे, वहाँरावल उदय सिंह डूंगरपुर 5000 सैनिकों समेत उनके साथ हो लिए, रावविरमदेव मेड़तिया 5000 सैनिकों के साथ आये और राव गंगा ने अपने पुत्रों को 7000 सैनिकों के साथ भेजा।राणा तेज़ी से ईडर पहुँचे, निज़ाम उल मुल्क राणा के आने की सूचना पाकर अपनी डींगें भूलकर हिम्मतनगर की ओर भागा। राणा ने ईडर की कमान वापस रायमल के हाथों में दी और निज़ाम उल मुल्क की तलाश में निकले,राणा ने हिम्मतनगर गढ़ की घेराबन्दी करा दी, भीषण रक्तपात हुआ, इस दौरान राणा की सेना के एक शीर्ष अधिकारी डूँगर सिंह चौहान गंभीर रूप से घायल हो गए। राजपूतों ने गढ़ की सारी मुस्लिम सेना का वध करदिया पर मुबारिज़ उल मुल्क बच निकला। वह किले के साथ बहती हुई नदी के किनारे पर रुका, उसके साथ सुल्तान द्वारा भेजा हुआ सैन्य दस्ता था।राणा ने उन पर आक्रमण कर दिया, सुल्तान की फ़ौज भाग छूटी और उल मुल्क अहमदनगर की ओर भागा। ब्रिटिश प्रशासक एलेग्जेंडर फोर्ब्स लिखते हैं, " इस्लाम के व्यूह को राजपूतों के रोष ने ध्वस्त कर दिया, सुल्तान की सेना के कई शीर्ष अधिकारी मारे गए, मुबारिज़ उल मुल्क गंभीर रूप से घायल होगया,उनके हाथी छीन लिए गए..फ़ौज में हाहाकार मच गयी। राणा ने वाडनगर के ब्राह्मणों को छोड़ दिया, विसलनगर के राजपाल हातिम खान का वध किया। जब राणा ने देखा की सुल्तान अब वापस नहीं आएगा और बड़बोले निज़ाम उल मुल्क को भी उसकी उद्दंडता का अच्छा सबक मिल गया है तो वे चित्तौड़ लौट गये।


*खानवा का युद्ध 1527*
बाबर ने उत्तर भारत में भयंकर लूटपाट मचाई, कई निर्दोष हिंदुओं की निर्मम हत्या की। राणा ने हिन्दू राष्ट्र की स्थापना और और राष्ट्र को विदेशी आक्रमणकारियों से मुक्त कराने के उद्देश्य सेबाबर के विरुद्ध युद्ध का आवाह्न किया और बाबर को देश छोड़ने का आदेश दिया।पानीपत की लड़ाई के बाद बाबर जान चुका था कि राणा उसके लिए बहुत बड़ा खतरा थे। राणा ने आगरा की ओर कूच किया,बाबर ने धौलपुर, ग्वालियर और बयाना की ओर सैन्य टुकड़ियां भेजीं।इधर राणा के नेतृत्व में सभी राजपूत राजघराने एक हुए (जालोर, सिरोही, हाड़ौती,डूँगरपुर, धुआंधार, आमेर, मारवाड़, चन्देरी-मालवा) मेवात के मैड़ राजपूत भी राणा के साथ थे। राजपूतों की आक्रामकता और वीरता सुप्रसिद्ध थी, बाबर की सेना में भय व्याप्त था। बाबर नेराज्य की सारी मदिरा बहा दी, और सैनिकों को किसी भी प्रकार का नशाकरने से मना कर दिया ताकि युद्ध के दौरान वो कमज़ोर न पड़ें। बाबर ने अपनी फ़ौज को राणा के विरुद्ध युद्ध को जिहाद बताया और दरबारियों एवं सैनिकों से क़ुरांन की कसमें खिलवायीं।

_युद्ध -16 मार्च, 1527_
फतेहपुर सीकरी के निकट खानवा।
बाबर ने रण क्षेत्र का बारीकी से निरीक्षण किया एवं योजनाबद्ध तरीके से व्यूह रचा, बंदूकधारियों एवं तोपों को स्थापित किया।यूँ तो राणा सांगा ने कई युद्ध लड़े थे और सभी जीते थे, पर वो परम्परागत तरीके से जीते युद्ध थे। राणा ने हमला बोला, जब राणा कीसेना बाबर द्वारा रचित व्यूह में फंस गई तब बाबर ने तोपों और बंदूकों से हमला करवाया। भीषण रक्तपात हुआ। अनेक राजपूत वीरगति को प्राप्त हुए, राणा गंभीर रूप से घायल हुए। 30 जनवरी 1528 को राणा ने देह त्याग दी, अखण्ड हिन्दू राष्ट्र का उनका स्वप्न उन्हीं के साथ चला गया। अंत समय में उनके शरीर पर 80 घाव थे। एक हाथ, एक पैर और एक आँख खो कर इस महाबली योद्धा ने बाबर जैसे शक्तिशाली सुल्तान से लोहा लिया और दिल्ली की सल्तनत हिला कर रख दी। अपने पूरे शासन काल में राणा ने सभी युद्ध जीते। तमाम इतिहासकारों का कहना है कि अगर बाबर के पास वो आधुनिक तोपें और बंदूकें ना होतीं तो वो राणा और राजपूतों की तलवारों को कभी पराजित नहीं कर पाता। राणा के साथ एक युग का अंत हुआ,उन जैसा महाबली कुशल सुशासक योद्धा दुबारा नहीं जन्मा। मातृभूमि की लिए अपने प्राणों की आहुति देने वाले इस शूरवीर को कोटि-कोटि नमन एवं श्रद्धांजलि।
*जय भवानी*
*जय महाराणा*
डॉ• नीतीश सिंह सूर्यवंशी

3 comments:

  1. After reading d post my perception about our history changed a lot.Communists have always exploited our legacy.

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    1. Manipulation of History was done on purpose, Gandhian-Nehruvian-Congressi-commie agenda "instigate hatred against Rajputs, distort their history, portray them as mughal allies, dalit beaters, rapists"

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  2. After reading d post my perception about our history changed a lot.Communists have always exploited our legacy.

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