असकोट राज (ज़मींदारी)
शासक वंश- सूर्यवंशी (कत्यूरी/पाल)
वर्तमान प्रमुख- राजवर भानुराज सिंह। इनकी सुपुत्री, राजकुमारी गायत्री का विवाह जोधपुर के राजकुमार शिवराज सिंह से हुआ।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भारत-नेपाल सीमा पर एक नगर है असकोट, यह तेरहवीं शताब्दी में कत्यूरी शासकों की एक शाखा द्वारा बसाया गया।
इतिहासकारों में कत्यूरी शासकों को ले कर कई मतभेद हैं, इनके विषय में विशेष प्रामाणिक लेख उपलब्ध नही हैं।
इतिहासकारों में कत्यूरी शासकों को ले कर कई मतभेद हैं, इनके विषय में विशेष प्रामाणिक लेख उपलब्ध नही हैं।
ब्रिटिश सरकार ने अपने शासनकाल में ई.टी.एटकिंसन को उत्तरी प्रांतों की जिलेवार रिपोर्ट बनाने के लिए नियुक्त किया। एटकिंसन के अनुसार कत्यूरी साम्राज्य उत्तर में भागलपुर (बिहार) से ले कर पश्चिम में काबुल (अफ़ग़ानिस्तान) तक था। [बद्री दत्त पाण्डेय के अनुसार कत्यूरी मूल रूप से अयोध्या से थे एवं उनका राज्य नेपाल से अफ़ग़ानिस्तान तक था]
किंवदंतियों और एटकिंसन के अनुसार शालिवाहन देव अयोध्या से हिमालय जाकर बद्रीनाथ के निकट जोशीमठ में बसे। उन्हीं के वंशज वासुदेव ने कत्यूरी वंश की स्थापना की। एटकिंसन ने असकोट के तत्कालीन राजवर से प्राप्त जानकारी और ताम्रपत्र शिलालेखों के आधार पर असकोट राजपरिवार के विषय में हिमालयन गज़ेटियर में लिखा।
छठी और सातवीं शताब्दी में कत्यूरी वंश का साम्राज्य अपने चरम पर था। फिर आपसी सामंजस्य की कमी और पारिवारिक कलह के चलते उसके पतन का दौर आया।
किंवदंतियों और एटकिंसन के अनुसार शालिवाहन देव अयोध्या से हिमालय जाकर बद्रीनाथ के निकट जोशीमठ में बसे। उन्हीं के वंशज वासुदेव ने कत्यूरी वंश की स्थापना की। एटकिंसन ने असकोट के तत्कालीन राजवर से प्राप्त जानकारी और ताम्रपत्र शिलालेखों के आधार पर असकोट राजपरिवार के विषय में हिमालयन गज़ेटियर में लिखा।
छठी और सातवीं शताब्दी में कत्यूरी वंश का साम्राज्य अपने चरम पर था। फिर आपसी सामंजस्य की कमी और पारिवारिक कलह के चलते उसके पतन का दौर आया।
सम्राट ब्रह्म देव के पौत्र अभय पाल देव परिवार से विमुख हो कर एक शांत दूरस्थ क्षेत्र की ओर चले आये जिसे आज असकोट कहते हैं। यह क्षेत्र घने जंगलों से घिरा था एवं आबादी नगण्य थी। परिवार की मुख्यधारा से अलग हो कर अभय पाल देव ने अपने नाम के आगे से देव हटा दिया। तब से आज तक उनके वंशज अपना उपनाम पाल लिखते हैं।
कुछ ही समय में पाल वंश ने स्वयं को पुनर्वासित कर राज्य में अस्सी कोट/किले स्थापित किये (जिनमें से कुछ वर्तमान में नेपाल में आते हैं) और राज्य को नाम दिया अस्सीकोट जिसे कालांतर में असकोट कहा जाने लगा।
बारहवीं शताब्दी के अंत में वन रावतों को हरा कर पाल वंश का विस्तार हुआ।
राजा ने लखनपुर नामक जगह को अपनी राजधानी बनाया। यहीं चौदहवीं और पन्द्रहवीं शताब्दी में पाल परिवार बसा। आज यह पूरी तरह उजड़ा हुआ है। एटकिंसन हिमालयन गज़ेटियर में लिखते हैं कि 1581 में असकोट पर अल्मोड़ा के राजा रूद्र चंद्र की संप्रभुता हो गयी। 1588 में राजवर राय पाल और उनके पूरे परिवार की निर्मम हत्या कर दी जाती है। परिवार का एकमात्र जीवित सदस्य था एक नवजात शिशु (महेंद्र पाल) जिसे दाई/आया ने बचा लिया था। बाद में महेंद्र पाल को लालन-पालन के लिए अल्मोड़ा नरेश रूद्र चन्द्र के पास भेज दिया जाता है। महेन्द्रपाल के बड़े होने पर अल्मोड़ा नरेश असकोट राज पुनः बहाल कर देते हैं।
महेन्द्रपाल वापस असकोट आते हैं पर उन्होंने राजधानी लखनपुर में बसने के बजाय देवाल में एक मज़बूत किला बनाया। पूरे पत्थर का यह किला हमले की स्थिति में पूरी तरह सुरक्षित था!
एटकिंसन गज़ेटियर में राजवर महेन्द्रपाल और उनके काका रूद्र पाल के बीच हुए संपत्ति विवाद का ज़िक्र करते हैं।
रूद्रपाल और उनके अनुज को उनके हिस्से का राज्य दे दिया गया। अस्सी गाँव महेन्द्रपाल और बाकी के चौबीस रूद्रपाल के पुत्रों में बंट गए।
बहादुर पाल की मृत्यु के बाद पुष्कर पाल असकोट के राजवर बने, पाल वंशियों ने सीमायें बढ़ाने, कब्ज़े करने के बजाय खुद के राज्य को सम्पन्न बनाने की दिशा में काम किया।
एटकिंसन गज़ेटियर में लिखते हैं कि कत्यूरी राजकुमारों को राज्यवर कहके सम्बोधित किया जाता था। 1204 में राजवर इंद्रदेव द्वारा दिये गए एक भूमि अनुदान पत्र से ऐसी जानकारी प्राप्त होती है।
पाल वंश की वंशावली में केवल ज्येष्ठ पुत्रों का उल्लेख है।
उत्तर प्रदेश ज़मींदारी अधिनियम और कुमाऊं ज़मींदारी उन्मूलन अधिनियम के अंतर्गत असकोट ज़मींदारी का अंत हुआ।
भारत में ऐसे चंद ही क्षत्रिय राज वंश हैं जिनका इतने लंबे समय तक का शासकीय इतिहास है, इसीलिए असकोट के सूर्यवंशी शासकों को शताब्दियों तक सम्मान मिला।
असकोट राज पर भले ही कालांतर में अन्य शासकों की सम्प्रभुता रही (चन्द, गोरखा, अंग्रेज़) पर उन सभी ने पारंपरिक रूप से पाल सूर्यवंशी कुल के विशिष्ट ऐतिहासिक महत्त्व को मान्यता दी।
इनका महत्व इनकी शक्ति और इनके धन के चलते नहीं, अपितु इसलिए था क्योंकि वे शाही कत्यूरी वंशज थे। ये भोग विलासिता से दूर बहुत ही साधारण जीवन व्यतीत करते थे। अट्ठारहवीं शताब्दी में जब गोरखा आक्रमण हुआ तो वे कांगड़ा तक काबिज़ हो गए पर उन्होंने असकोट में कोई हस्तक्षेप नहीं किया।
नेपाली गोरखा और अंग्रेज़ों के मध्य हुए युद्ध में गोरखा हार गए। सिधौली संधि के तहत अस्कोट भी ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बन गया।
अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी कत्यूरी वंश की यह शाखा धर्म-परायण रही, अपनी संस्कृति को जीवंत रखा। बच्चों में संस्कार रहे। भोजन उच्च वर्ण का ब्राह्मण ही बनाता था।
एटकिंसन लिखते हैं कि राजवर पुष्कर पाल उत्तानपाद की दो सौ इक्कीसवीं पीढ़ी थे।
पाल एक उपनाम है, वे कत्यूरी शाखा के विशुद्ध सूर्यवंशी हैं। महादेव इनके आराध्य हैं।
उत्तर प्रदेश में बसे पाल और सूर्यवंशी उपनाम वाले क्षत्रिय इसी कत्यूरी वंश की शाखा हैं और कुमाऊँ-गढ़वाल से आ कर उ•प्र• में बसे।
बस्ती जिले के अमोढ़ा राज और महसों राज एवं बाराबंकी का हड़हा राज इसी वंश के हैं। पाल सूर्यवंशियों की प्रथम स्वतंत्र संग्राम में अति महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इनकी संख्या शेष वंशों की तुलना में बहुत कम है. उत्तर प्रदेश में इन्हें क्षत्रियों में सबसे उच्च वर्ण का माना जाता है !
अस्कोट राज
वंशावली-
सम्राट ब्रह्म देव
राजवर अभय पाल देव
राजवर निर्भय पाल
राजवर भरत पाल
राजवर भैरव पाल
राजवर भूपाल
राजवर रतनपाल
राजवर शंखपाल
राजवर श्यामपाल
राजवर साईंपाल
राजवर सुरजन पाल
राजवर भोजपाल
राजवर भरत पाल
राजवर स्तुतिपाल
राजवर अच्छवपाल
राजवर त्रिलोकपाल
राजवर सूर्यपाल
राजवर जगतपाल
राजवर प्रजापाल
राजवर रायपाल
राजवर महेन्द्रपाल
राजवर जैतपाल
राजवर बीरबल पाल
राजवर अमरपाल
राजवर अभयपाल
राजवर उच्छब पाल
राजवर विजयपाल
राजवर महेन्द्रपाल
राजवर बहादुरपाल
राजवर पुष्करपाल
राजवर गजेंद्रपाल
राजवर विक्रम बहादुरपाल
राजवर टिकेंद्र बहादुरपाल
राजवर भानुराज सिंह पाल
सम्राट ब्रह्म देव
राजवर अभय पाल देव
राजवर निर्भय पाल
राजवर भरत पाल
राजवर भैरव पाल
राजवर भूपाल
राजवर रतनपाल
राजवर शंखपाल
राजवर श्यामपाल
राजवर साईंपाल
राजवर सुरजन पाल
राजवर भोजपाल
राजवर भरत पाल
राजवर स्तुतिपाल
राजवर अच्छवपाल
राजवर त्रिलोकपाल
राजवर सूर्यपाल
राजवर जगतपाल
राजवर प्रजापाल
राजवर रायपाल
राजवर महेन्द्रपाल
राजवर जैतपाल
राजवर बीरबल पाल
राजवर अमरपाल
राजवर अभयपाल
राजवर उच्छब पाल
राजवर विजयपाल
राजवर महेन्द्रपाल
राजवर बहादुरपाल
राजवर पुष्करपाल
राजवर गजेंद्रपाल
राजवर विक्रम बहादुरपाल
राजवर टिकेंद्र बहादुरपाल
राजवर भानुराज सिंह पाल
Excellent article hukum
ReplyDeletethanks hkm
DeletePlease mention relation between suryavanshi rajputs of oudh and purvanchal with pal katyuri dynasty
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DeletePlease find some relationships between pal dynasty of East and pal dynasty of himalaya
ReplyDeleteyes hkm, sure. Many historians hold the view that the eastern Pala vansa were Suryavanshi's
DeleteReally nice article.. Pal vansh ka hone ke bad bhe mujhe is bare mai bahut kam jankari thi. Aapke article se bahut kuch janne ko mila. Agar Pal vansh ko janne k liye koi Book ho to plz suggest me..
ReplyDeleteMy email is pahadimasab@gmail.com
क्या आपके पास में पाल वंश का इससे आगे का इतिहास उपलब्ध है
ReplyDeleteYes
DeleteNyc Article Hukum👌👌
ReplyDeletePal vansh chandravashi the krishna ji ke vansaj
ReplyDeleteHello, can someone tell me gotra of Aagri caste in Uttarakhand..?
ReplyDeleteHello, can someone tell me gotra of Aagri caste in Uttarakhand..?
ReplyDeleteHello, can someone tell me gotra of Aagri caste in Uttarakhand..?
ReplyDeleteअनुश्रूतियों के अनुसार कत्यूर साम्राज्य आधुनिक उत्तराखण्ड के कुमायूं मण्डल के राजा ब्रह्मदेव थे। ब्रह्मदेव के पौत्र अभयपाल देव ने पिथैरागढ़ के असकोट में अपनी राजधानी बनायी थी। उनके शासन के बाद उनके पुत्र अभयपाल के समय यह साम्राज्य विघटित हो गया। अभयपाल देव के दो छोटे पुत्र अलखदेव और तिलकदेव थे। महाराजा अलख देव और तिलकदेव असकोट को छोड़कर एक बड़ी सेना लेकर 1305 में उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में गोरखपुर व गोण्डा में आ गये। यह क्षेत्र भयंकर दलदल तथा बनों से आच्छादित था। यहां पर राजभर आदिवासियों का आधिपत्य था। इस क्षेत्र के दक्षिण में घाघरा तथा पूर्व में राप्ती बहती है जिनसे क्षेत्र की रक्षा होता थी। इन दो राजाओं ने महुली को अपनी राजधानी बना कर पाल वंश का नया प्रशासन प्रारम्भ किया। इसी प्रकार ये फैजाबाद जिले के पूरा बाजार में भी बस गये थे। कहा यह भी जाता है कि ये बाराबंकी के राजा हर्ष से जुड़े थे। पूरा बाजार के परिवार में आदिपुरुष लालजी शाह थे। जबकि बस्ती के महुली के आदि पुरुष अलख देव और तिलकदेव दो भाइयों के वंशज हैं। संभव है ये दोनो एक दूसरे से जुड़े रहे हों। अनुश्रूतियों के अनुसार दोनों भाइयों ने राजभरों के मुखिया कौलविल से महुली की सम्पत्ति अधिग्रहीत की थी। समय बीतते बीतते उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया था। ये अनेक परिवारों में विभक्त हो गये थे। इन घरों के प्रमुखो ने पाल उपनाम धारण किया था । इस विभेदीकरण की पुष्टि दिल्ली के सम्राट ने भी की थी। यद्यपि इससे सम्बंधित कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलता है।
ReplyDeleteमहाराजा अलख देव (1305-1342 ) :-- राजा अलखदेव 1281 में जन्मे, महसों के प्रथम राजा थे। सम्राट ब्रह्म देव के परपोते, उन्होंने उत्तर-पूर्वी यूपी के मैदानों में एक सेना का नेतृत्व किया और स्थानीय आदिवासी राजभर राजा को एक क्रूर युद्ध में शामिल किया, जिसमें अलख देव, उनके भाई तिलक देव और उनकी सूर्यवंशी राजपूत सेना विजयी हुई। अलख देव ने 1305 में महुली गाँव में बस्ती (गोरखपुर से 100 किमी) से 32 किलोमीटर की दूरी पर अपनी राजधानी स्थापित की। महसों-महुली के सामंती राज्य ने 14 कोस (47 किलोमीटर) लंबा और कई सौ गांवों को घेर कर बनाया गया है। उनकी मृत्यु 1342 में हुई थी।
राजा तपतेजपाल ( 1342-1359 ) :- महसों के द्वितीय राजा राजा तपतेजपाल का जन्म 1308 में हुआ था। उनके शासनकाल के दौरान, 1353 में, भारत के सम्राट, सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने दिल्ली से मार्च किया, जिसने बंगाल के नवाब को दंडित करने के लिए एक विशाल सेना का नेतृत्व किया, उसने अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की थी। उसी वर्ष नवंबर में, सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने उत्तर-पूर्वी उत्तर प्रदेश में शिविर और पिच शिविर को रोकने का फैसला किया। यहाँ वह सामंती प्रभुओं से श्रद्धांजलि अर्पित करता है और दिल्ली सल्तनत की गद्दी के लिए अपनी निष्ठा सुनिश्चित करता है। सुल्तान के बंगाल अभियान के लिए तपतेज देव पुरुषों, हथियारों और मातृत्व प्रदान करता है। बदले में, सम्राट सुल्तान ने तपतेज देव को राजा का दर्जा दिया और इसके साथ आने वाले विशेषाधिकारों को भी दिया। वे पाल को अपने नाम के आगे शीर्षक के रूप में उपयोग करने का अधिकार पा गये। एह उप नाम वरिष्ठ असकोटे परिवार से लिया है उनकी मृत्यु 1359 में हुई थी।
बड़े भाई आपने निष्पक्ष तथ्य प्रस्तुत किया है आपकों बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🏻
DeleteHariharpur Suryavanshi pal rajvance ki state rahi hai yah 12 cote me faila katyuri raj vance alakh pal dev avm tilak pal dev ke vasaj rahate hai katyur Askote mahaso Belduha pal Suryavanshi rajvance ayodhya ke Suryavanshi raza salivahan dev ke vansaj aur adunik uttarakhand ke antim samrat Bramdev ke putra pali pachahu shakha ke raza trilok pal dev ke putra abhay pal dev askote riyasat ki sthapana kiya abhay pal dev ke chote putra alkhdev ji avam tilak dev ji ek badi sena lekar mahuli razya ki sthapana kiya jo ki 47 kilometers aria me tha hariharpur me rahkar mahuli razya ka prsasan kiya ja raha tha raza deep pal ke chote putra kunwar karan pal ji hariharpur me rahate huyee jamindaari kayam kiye aage inake vansajo me rai kanhiya bax pal ji huyee inake putra jagat Bahadur pal ji sakt Bahadur pal Narendra Bahadur pal huye jagat bahadur pal ji ke putra Harihar prasad pal aur Dhan Bahadur pal huye phir mahadev pal Gyan Bahadur pal Chndrika Bax pal dev Gajapti prasad pal Rajendra Bahadur pal Sh virender bahadur pal
ReplyDeleteDrop me your contact number
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