Saturday 27 August 2016

अमर क्रांतिवीर ठा• रामप्रसाद तोमर (बिस्मिल)

जाने कितने झूले थे फाँसी पर, कितनो ने गोली खाई थी....क्यो झूठ बोलते हो साहब, कि चरखे से आजादी आई थी....
काकोरी और मैनपुरी काण्ड के सूत्रधार, स्वाधीनता संग्राम के नायक अमर शहीद ठाकुर रामप्रसाद तोमर (बिस्मिल) थे।
मध्य प्रदेश के एक तंवर राजपूत जमींदार परिवार से ताल्लुक़ रखने वाले रामप्रसाद में देश प्रेम का जज़्बा बचपन से था।
चंद्रशेखर आज़ाद और भगत सिंह भी तोमर को अपना गुरु मानते थे।इनकी कविता "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है" ने ना जाने कितने जोशीले नौजवानों में देश प्रेम की अलख जलायी।
ठाकुर रामप्रसाद तोमर, ठाकुर रोशन सिंह, अशफाक और राजेंद्र लाहिरी को काकोरी कांड के लिए फांसी की सज़ा सुनाई गयी।अंत समय में भी यही कविता ज़बान पर थी "सरफ़रोशी की तमन्ना...."
मगर अफ़सोस है कि रामप्रसाद, राजगुरु, भगत, रोशन, लाहिरी जैसे सैकड़ों वीरों के बलिदान को भुलाकर, अंग्रेजों के एजेंट को महात्मा बना दिया गया और देश 60 सालों के लिए ऐसे पापियों के पास चला गया ।
भारत माँ के इस वीर सपूत को शत शत नमन।

गोरखपुर जेल में लिखी तोमर की आत्मकथा का एक अंश निम्नलिखित है-
तोमरधार में चम्बल नदी के किनारे पर दो ग्राम आबाद हैं, जो ग्वालियर राज्य में बहुत ही प्रसिद्ध हैं, क्योंकि इन ग्रामों के निवासी बड़े उद्दण्ड हैं । वे राज्य की सत्ता की कोई चिन्ता नहीं करते । जमीदारों का यह हाल है कि जिस साल उनके मन में आता है राज्य को भूमि-कर देते हैंऔर जिस साल उनकी इच्छा नहीं होती, मालगुजारी देने से साफ इन्कार कर जाते हैं । यदि तहसीलदार या कोई और राज्य का अधिकारी आता है तो ये जमींदार बीहड़ में चले जाते हैं और महीनों बीहड़ों में ही पड़े रहते हैं । उनके पशु भी वहीं रहते हैं और भोजनादि भी बीहड़ों में ही होता है । घर पर कोई ऐसा मूल्यवान पदार्थ नहीं छोड़ते जिसे नीलाम करके मालगुजारी वसूल की जा सके । एक जमींदार के सम्बंधमें कथा प्रचलित है कि मालगुजारी न देने के कारण ही उनको कुछ भूमि माफी मेंमिल गई । पहले तो कई साल तक भागे रहे । एक बार धोखे से पकड़ लिये गए तो तहसील के अधिकारियों ने उन्हें बहुत सताया । कई दिन तक बिना खाना-पानी के बँधा रहने दिया । अन्त में जलाने की धमकी दे, पैरों पर सूखी घास डालकर आग लगवा दी । किन्तु उन जमींदार महोदय ने भूमि-कर देना स्वीकार न किया और यही उत्तर दिया कि ग्वालियर महाराज के कोष में मेरे कर न देने से ही घाटा न पड़ जायेगा । संसार क्या जानेगा कि अमुक व्यक्ति उद्दंडता के कारण ही अपना समय व्यतीत करता है । राज्य को लिखा गया, जिसका परिणाम यह हुआकि उतनी भूमि उन महाशय को माफी में दे दी गई । इसी प्रकार एक समय इन ग्रामों के निवासियों को एक अद्भुत खेल सूझा । उन्होंने महाराज के रिसाले के साठ ऊँट चुराकर बीहड़ों में छिपा दिए । राज्य को लिखा गया; जिस पर राज्य की ओर से आज्ञा हुई कि दोनों ग्राम तोप लगाकर उड़वा दिए जाएँ । न जाने किस प्रकार समझाने-बुझाने से वे ऊँट वापस किए गए और अधिकारियों को समझाया गया कि इतनेबड़े राज्य में थोड़े से वीर लोगों का निवास है, इनका विध्वंस नकरना ही उचित होगा । तब तोपें लौटाईं गईं और ग्राम उड़ाये जाने से बचे । ये लोग अब राज्य-निवासियोंको तो अधिक नहीं सताते, किन्तु बहुधा अंग्रेजी राज्य में आकर उपद्रव कर जाते हैं और अमीरों के मकानों पर छापा मारकर रात-ही-रात बीहड़ में दाखिल हो जाते हैं ।बीहड़ में पहुँच जाने पर पुलिस या फौज कोई भी उनका बाल बाँका नहीं कर सकती । ये दोनों ग्राम अंग्रेजी राज्य की सीमा से लगभग पन्द्रह मील की दूरी पर चम्बल नदी के तट पर हैं । यहीं के एक प्रसिद्ध वंश में मेंरे पितामह श्री नारायणलाल जी का जन्म हुआ था । वह कौटुम्बिक कलह औरअपनी भाभी के असहनीय दुर्व्यवहार के कारण मजबूर हो अपनी जन्मभूमि छोड़ इधर-उधर भटकते रहे । अन्त मेंअपनी धर्मपत्नी और दो पुत्रों के साथ वह शाहजहाँपुर पहुँचे । उनके इन्हीं दो पुत्रों में ज्येष्ठ पुत्र श्री मुरलीधर जी मेरे पिता हैं । उस समय इनकी अवस्था आठ वर्ष और उनके छोटे पुत्र - मेरे चाचा (श्री कल्याणमल) की उम्र छः वर्ष की थी.

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